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29 Apr 2024 · 1 min read

दोहावली…

आलोचक की बात सुन, शायद हो सौग़ात।
वही हितैषी आपका, कहे रात को रात।।//1

बुद्धि स्वयं की भी लगा, छोड़़ भेड़ की चाल।
संग काल के तुम चले, तभी गलेगी दाल।।//2

अँधी भक्ति अब छोड़कर, करो स्वयं का मान।
अपने सपने तब खिलें, करो सत्य गुणगान।।//3

राजनीति के खेल में, झूठा सबका जोश।
जिसकी छोटी झूठ हो, उसका करना होश।।//4

हम सब सच में चोर हैं, देखो मन में झाँक।
जिसे आइना ले लुभा, ऊँची तब हो नाक।।//5

ख़ुद को कहे फ़कीर जो, उसको सदा सलाम।
ऐसे अद्भुत संत को, हिमगिरि करे प्रणाम।।//6

टाँग पकड़ जो खींचना, मानव समझे खेल।
उसकी दुनिया में सदा, बनती देखी रेल।।//7

आर. एस. ‘प्रीतम’

Language: Hindi
2 Likes · 26 Views
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