रागनी नं 31 //लख्मीचंद तो लख्मीचंद था, दुजा ओर नही।
लख्मीचंद तो लख्मीचंद था, दुजा ओर नही।
गंगा कैसा धाम जांटी, झुठी कोये बोर नही..!!टेक!!
एक हाली के अजब नजारे, बोगा बीज वो न्यारे न्यारे,
भरगा ज्ञान के खुढ सारे, कोये छोड़ा खाली पोर नही..!!१!!
हर अक्षर मैं वजन मिला, सुनकै हृदय यो चमन खिला,
कहैकै साची गया चला, ये समझै डागर डोर नही..!!२!!
ज्ञानी बात बतावै ज्ञान की, रचना नही मामूली इंसान की,
लिला सै कृष्ण भगवान की, यो खाली मचा सोर नहीं..!!३!!
गुरु कपीन्द्र बतावै साची, दादा की धूम चौगरदे माची,
मनजीत लागै उसनै काची, जिसनै करी सही गोर नही..!!४!!
रचनाकार:- पं मनजीत पहासौरिया
फोन नं:- 9467354911