राखी
मुझे भी कलाई में धागा दो
पवित्र बन्धन राखी महापर्वों का
बहन नहीं, भाई भी नहीं जिसके
कैसे वों भी इस पर्व को मनाएँ
बाजार में पड़ी है कबसे राखी
बहना उसे कोई लाओ न
चन्दन रौली अक्षत से तिलक
माथे पे मुझे भी लगाओ न
सुनो न दुर्गा सुनो न लक्ष्मी
कलाई में मुझे भी बान्धो न
मिठाई देंगे उपहार भी देंगे
हँसी – खुशी उर्दङ्ग मचाएंगे