राखियां
बाज़ार सजी राखियों से ,
मेरी सूनी कलाई और दिल कहता
होती अगर कोई मेरी बहना ,
हाथों में होती सुंदर राखि ।
फिर दिल की ख़ुशी क्या कहना ।
बहन सज ,धज कर आती,
माथे पर तिलक लगाती ।
और देती आशिर्वाद ,
कलाई में राखि बांधकर ,
मिठाई ,का लेता स्वाद ।
मेरे दोस्तों ने राखि बांधी ,
हाथ पर प्रेम के साखियां है
आज चलने की शान अलग है,
हाथ में रक्षाबंधन की राखियां है
मैंने भी राखि बांध ली है ,
फूलों की डालियों से ,
माथे पर फूलों ने तिलक लगाई है
पक्षीयो ने चहचहाकर ,पूजा की ,
शंख ध्वनी बजाई है ।
फिर भी आंगन में सूना बैठा ,
बाज़ार की सुंदर एक राखि बांधना चाहता हूं ।
मेरी भी परि , सी बहना है।
दोस्तों को कहना चाहता हूं ।।
शंकर आँजणा नवापुरा धवेचा
बागोड़ा जालोर
मो-8239360667