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15 Feb 2021 · 2 min read

रहस्यों से आबद्ध एक छवि

रहस्यों से आबद्ध एक छवि

रहस्यों से आबद्ध एक छवि
जिसका न आदि न अंत
एहसास का अंबर ही विश्वास
उसके होने का आभास

एक ऐसी छवि
जो रोती भी है , हँसती भी है
उसकी पूर्णता का आभास

सुख में , दुःख में
चिंतन में , आध्यात्म में
विचरण कर रहा है वह
यहीं कहीं आसपास
टोह रहा है

कहीं कोई सत्मार्ग से
भटक तो नहीं गया
कहीं कोई क्रंदन की अवस्था में तो नहीं
या फिर
कोई जीवन की आस में
जीवन से जूझता

कहीं कोई
उसके आने के इंतज़ार में
स्वयं को पीड़ा तो नहीं दे रहा
आखिर
ये कैसी भूख है
जीवन संघर्ष से मुक्ति की
इस काया से मुक्ति की

जीवन चरमोत्कर्ष पर विराजने की
तो कहीं दूसरे छोर पर
जीवन माया के बंधन के
म्फ्पाश में बंधा हुआ
मोह माया का
मोह काया का
“अहं” से पीड़ित
भौतिक जगत को ही
जीवन के चरमोत्कर्ष का
मर्म समझता

सुख की परिभाषा से अनभिज्ञ
मोक्ष के अज्ञान से अनजान
काय सुख , माया सुख
भौतिक जगत के हर कण में
खोजता भौतिक सुख
यह भौतिक सुख
आध्यात्मिक सुख से परे

कहीं सुनसान घुप्प अँधेरे की ओर
प्रस्थित करता
जिन्दगी के मायने ही
समाप्त हो जाते
यूं ही भटकते रहने की लालसा
जीवन का अंतिम सत्य हो जाती

आखिर
मैं क्या हूँ ? क्यों हूँ? कौन हूँ ?
इस प्रश्नों के चिंतन से अभिज्ञ
स्वयं को सत्य से परे
कहीं दूर घसीटता
ज़र्ज़र अवस्था में
जीवन की अवस्थाओं को पार करता
जीवन के अंत को प्राप्त करता

पर अफ़सोस
जीवन का सत्य, अभी भी उससे दूर
उसे खाली हाथ लाया था जिस तरह
उसी तरह खाली हाथ
भेजने को विवश

चूंकि
काया का अध्ययन तो संभव हुआ
पर आध्यात्म ………..कहीं दूर
शून्य में स्वयं को खोजता …………….

Language: Hindi
1 Like · 165 Views
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