रहती है किसकी सदा, मरती मानव-देह (कुंडलिया)
रहती है किसकी सदा, मरती मानव-देह (कुंडलिया)
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रहती है किसकी सदा, मरती मानव-देह
एक दिवस मिट जाएगी, करो न इससे नेह
करो न इससे नेह, जिंदगी सौ वर्षों की
यही अधिकतम आयु, मिली है उत्कर्षों की
कहते रवि कविराय, समय की धारा बहती
गए त्याग सब देह, कीर्ति यश – गाथा रहती
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999 761 5451