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14 Dec 2017 · 3 min read

‘रसवृष्टि धरा पर फिर होगी’

आओ मेरे प्यारे मित्रों रिश्तों की बात बताता हूँ
जो दिल मिलकर टूटे बिछड़े उन सबकी व्यथा सुनाता हूँ
युग-युग से है सबको पसंद बस रंग स्वार्थी चोखा है
हर कदम सम्हलकर रखना है पग-पग पर मिलता धोखा है

प्रिय मित्र हमारे ‘सरल’ हृदय भाभी ‘परिलक्षित’ सरला हैं
हैं समसमान भाभी मधुघृत ऋतु स्नेह रूप में तरला हैं
प्रिय पुत्र एक उनका ‘मोहित’ लगता अतिशय संस्कारी है
उसका संतों से प्रेरित मन पर भाव हृदय पर भारी है

हैं मित्र एक प्यारे अग्रज ‘जगदीश’ नाम मन पावन है
प्रिय कन्या एक ‘प्रीति’ उनकी सुकुमारि रूप मनभावन है
शुचि रूप ‘प्रीति’ मन संस्कारित रिश्ते की बात चलाई थी
था कहा आप भी साथ चलें, यह बात हमें मन भायी थी

भाभी ने लड़की देखी जब मन उनका अति हर्षाया था
था प्रमुदित मन घर का आँगन हर पंक्षी ने सुख पाया था
फिर किया प्रीति को था पसंद अति सुन्दर प्यारी जोड़ी थी
पर क्रूर नियति का खेल चला हर दिशा उसी ने मोड़ी थी

उन्मुक्त गगन में पंक्षी दो उड़ते रहते थे पंख हिला
लड़का-लड़की थे साथ उड़े भाभीजी का सहयोग मिला
लड़का जैसे था राजकुँवर लड़की परियों की रानी थी
थी रची विधाता ने जोड़ी प्रतिपल उसकी दीवानी थी

सहपाठी लड़की का ‘गौरव’ पहले उसके घर आता था
थे मित्र परस्पर दोनों ही ऐसा ही उनमें नाता था
‘मोहित’ ने लड़की के अतीत के प्रश्न शताधिक खंगाले
है कोई समुचित साक्ष्य नहीं आरोप सहस्त्रों गढ़ डाले

दिल टूटा लड़की का सुनकर तब त्वरित सफाई दे डाली
पर नियति बनी पाषाण हृदय वह रात बहुत ही थी काली
पल में टूटे सपने सारे वह बिलख-बिलख कर रोई थी
पर सुनता कौन अकेली की मानवता मुँह ढक सोई थी

जब आत्मघात की बात उठी तब लड़के ने कुछ ध्यान दिया
मोबाइल लड़की का लेकर बहलाकर फ़ौरन निकल लिया
अपने मैसेज सब चित्र मिटा वह निष्कलंक बन बैठा था
आरोप सभी थे लड़की पर वह ‘मोहित’ जिद में ऐंठा था

यह बात जान भाभीजी ने लड़के का ही था पक्ष लिया
था अपमानित अब वधू पक्ष उसने जमकर प्रतिकार किया
फिर पावन रिश्ता टूटा था दो पल में बंटाधार हुआ
‘जगदीश’ बहुत ही थे क्रोधित उस घर में हाहाकार हुआ

‘मोहित’ को खोजे वधूपक्ष शायद कोई निकले निदान
स्विच आफ किये मोबाइल का लड़के वाले थे सावधान
जब मुझको पता चला प्रकरण तब मैंने हस्तक्षेप किया
आरोप लगे यद्यपि मुझ पर तब भी घावों पर लेप किया

लड़के वालों का पक्ष सुना बोले मैं क्योंकर घबराऊं
लाखों में एक लाल मेरा मैं घर में झूठन क्यों लाऊं
अति क्रोधित लड़की के पापा कहते मैं धूल चटा देता
जो आप मध्य में मत होते कायर को सबक सिखा देता

वह बहुत सेंसेटिव लड़का है मैसेज का अर्थ अनर्थ किया
थी फूलों सी मेरी बेटी उसका जीवन क्यों व्यर्थ किया
थे सिसक उठे उसके पापा बाजू में मम्मी अश्रु भरे
दुःख देख-देख कर लड़की का रिस उठते थे सब घाव हरे

यद्यपि है सक्षम पुरुष यहाँ नारी हर भार उठाती है
है कहने को विकसित समाज पर नारी ही दुःख पाती है
अबला नारी जिसको कहते सबला बन वह कब सम्हलेगी?
अब पुरुषवर्ग की दृष्टि यहाँ किस युग में आखिर बदलेगी?

घर में होते जो धर्म-कर्म वे सच्ची राह दिखाते हैं
जो मिलते हैं संस्कार हमें पग-पग पर हमें बचाते है
वह दीप स्नेह से जलता है जब साथ निभाती है बाती
जो राह दिखाई पुरखों ने वह सदा लक्ष्य तक पहुँचाती

जो किस्मत को मंजूर नहीं उसका अब सोग मनाना क्या
जो बीत गया कल दुखदायी उसको अब गले लगाना क्या
कर प्रेम स्नेह से अभिसिंचित इस मिट्टी में नव प्राण भरें
रसवृष्टि धरा पर फिर होगी नवजीवन का संचार करें

इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’
(नोट: उपरोक्त कविता में उल्लिखित सभी चरित्र काल्पनिक हैं)

Language: Hindi
267 Views
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