रवायत
ये मोहब्बत की नज़ाकत,
ये लियाक़त,
ये शरारत,
लगे हैं बारिश की बूंदों के छुअन सी ।
तेरे इश्क़ की इबादत,
ये शराफ़त,
ये लबों के शबाब चखने की इजाज़त
लगे हैं मद्धम पवन के छुअन सी ।
जी भर के देखूं तुझे,
की रहे इश्क़ हमारा सलामत,
सजा – ए – इश्क़ हो तेरी,
ना दूं एक पल को जमानत,
क्या लैला क्या मजनू,
क्या हीर क्या रांझा,
कर लूं मैं हासिल यूं
की सजे हर आशिकों के लब पर,
हमारे अत़्फ की रवायत ।
जो लिखा है तुझको, किस्मत में अपनी,
मोहब्बत थी मेरी, चली ना उस रब की हुकूमत,
जो साथ है तेरा, सिकंदर हम खुद में,
ना दवा की है ख्वाहिश, ना दुआ की जरूरत ।
– Nikhil Mishra