रफाकत में
क़ाफ़िया पैमाइस ओ कसाफ़त में
उम्र कट रही अब इसी रफ़ाक़त में
क्यों करता मलाल उसके हिज्र का
आख़िर रखा हि क्या है ख़िजालत में
चलो खुद पे फ़क़त पढो मुझको यार
सुकूँ ए क्लब नइ किसी क़ियादत में
कैसे रखूँ उसके बाद औरों से त’अल्लुक़
ख़ून रिसने लगाता हर्फ़ ओ हिकायत में
मुझपे जहन्नुम की आग भी बे असर हुई
इस कदर जला हूँ ज़र्बत – उल – हरारत में
पता चला जबसे याद करती मुझे वो कुनु
लुत्फ़ आने लगा है सुखन ओ निज़ामत में