“रफ़्तार पकड़ती ज़िंदगी”
ठहरी – ठहरी सी ज़िंदगी,
रफ़्तार पकड़ रही है।
दुश्मन ठहराती कभी किसी को,
कभी कोई यार पकड़ रही है।
इसके बदलते रूप देख लगता है,
कोई अईय्यार पकड़ रही है।
पकड़ का हिसाब कर लेगी कल,
अभी बेशुमार पकड़ रही है।
ठहरी – ठहरी सी ज़िंदगी,
रफ़्तार पकड़ रही है।
ओसमणी साहू ‘ओश’ रायपुर (छत्तीसगढ़)