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18 Jan 2021 · 1 min read

रचना

चांद

यादों की गली में आता- जाता चांद
मन की बात सुनकर जब जाता चांद

दु:ख – सुख में संग मेरे रहता चांद
घुम रहा है! अब मेरा तन्हा चांद

आधी रात- ढले चुपके से आना चांद
संग अपने चांदनी को ले जाना चांद

मुख पे आभा! हल्की मुस्कान के संग आता
हंसी की लहर, लहरा कर तब जाता चांद

तान- प्रेम की छेड़ – धीरे से मुझको बुलाता
राधा संग रास रचा खिड़की से गाता चांद

खुली सांसें, महकती खुशबू, मन आंगन में
रूह में मेरी भर कर आन्नद जाता चांद

होले से जब भी करवट ली मैंने…….
जाग उठा! नींद का कितना कच्चा चांद

आईना देख रोज जब भी संवरता है..
अक्स, पानी, पे ठहरता, बहक जाता चांद

इश्क़ पे न पडे नज़र जब- तक…..
हुस्न का रंग निखरता कब, भाता चांद

लम्हों में कैद कर दे जो सदियों को…
ऐसा कोई तलबगार नहीं, ऐसा मेरा चांद

सुनो! छत से यूँ आंगन ना तुम उतरा करो
रात- बदन मेरा फिर जल जाता चांद….

संग मेरे आंख- मिचौली तुम खेलते हो
यूँ बादल में छुप- छुप कर सोता चांद

रात गुजरती जब – जब करवट लेती
मन बहलाया, मन मुस्कां जाता चांद

बाहें फैलाकर जब मैं पुकारूँ उनको
कुछ पल बैठ संग मेरे, मन बहला जाता चांद
शीला गहलावत सीरत
चण्डीगढ़

Language: Hindi
6 Likes · 9 Comments · 423 Views
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