“रक्तबीज”
मैंने समझ लिया है
जान-पहचान लिया है
वो कम नहीं होता
बढ़ता ही जाता है
रक्तबीज की तरह।
न सिमटता, न दुबकता
न ही छुपता कभी।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में
फैला हुआ है जो
सात समन्दर पार तक,
कर्क, मकर औ’ भूमध्य
सभी रेखाओं से परे
अनन्त-असीम संसार तक।
अकल्पनीय ढंग से
जो बन जाता
रक्तबीज की तरह
हू-ब-हू, सेम-सेम,
जिसे कहती सारी दुनिया
प्रेम… प्रेम…. प्रेम…..।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
भारत के 100 महान व्यक्तित्व में शामिल
एक साधारण व्यक्ति