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20 Mar 2020 · 1 min read

रंजीशे

बड़ी रंजीशे सी बढ़ने लगी है हमारी यारी में,
जैसे दरारे पड़ी गई है मित्रता कि मिनारी में।
कब तलक इन दरारो कि तू खैर मनाऐगा,
आखिर, सुदामा लौटकर कृष्ण के पास ही आऐगा।।

नफरत की लू से कब तब भूमी को तरसाऐगा,
दोस्ती रूपी सावन झूम झूम कर आऐगा।
इस तरह कौन सी दौलत को तू पाजाऐगा,
अंतत: मित्र के अभाव में वक्त गुजारी ही पाऐगा॥

आपका अपना
लक्की सिंह चौहान
ठि.:- बनेड़ा (राजपुर)

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 270 Views
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