झोली फैलाए शामों सहर
कर दे रहम रब्बा इक नज़र
झोली फैलाए शामों सहर
टूट जाता है दिल मेरा
ज़माने की बातों से
रोते बिलखते तड़पते हैं
हम न सो सके रातों से
रक्खे हैं हम उम्मीद,सबर
कर दे रहम रब्बा इक नज़र
वक्त मरहम बन जाता है
जीना भी सिखलाता है
ठोकर खाते-खाते इक दिन
मंजिल पास आता है
रहे मजबूत इरादे अगर
कर दे रहम रब्बा इक नज़र
ना शर्म हया है आंखों में
जी रहें बेहयाई से
कुछ भी कर गुजरते है वो
ना डर जगहंसाइ से
न समझाने का कोई असर
कर दे रहम रब्बा इक नज़र
नूर फातिमा खातून “नूरी”
जिला- कुशीनगर
उत्तर प्रदेश
मौलिक स्वरचित