#रंग (व्यंग्य वाण)
#रंग (व्यंग्य वाण)
बहुत रंगीली दुनिया,बिखरे रंग हजार ।
कुछ होते हैं प्राकृतिक,कुछ मानव व्यवहार।।
जीवन के हर मोड़ पर,रंगों की बरसात।
कुछ को दिन अच्छे लगें,कुछ को अच्छी रात।।
काला टीका माथ पर,बाधा करता दूर ।
भरी जवानी यदि लगे,सपने चकनाचूर ।।
नीला पीला लाल अब,बना अलग पहचान।
एक रंग दी मान्यता,काले से अपमान।।
रंग भेद की कुप्रथा,भोग रहा इंसान।
गौर वर्ण सब चाहते,कौन रंग भगवान।।
रंग बिरंगी एकता, इक नाम रंगदार ।
इनसे डरते हैं सभी,सज्जन पहरेदार ।।
भक्ति रंग जिस पर चढ़े, सभी रंग बेकार।
इसके वश ही जगत में, कृष्ण राम अवतार ।।
राजेश कौरव सुमित्र