योग की महिमा
योग की महिमा
योग की अद्भुत प्रक्रिया,
जो नर करता नित्य क्रिया।
उत्तम स्वास्थ्य लाभ वह पाता,
जीवन जीने की राह बनाता ।
योग का जब होता आरम्भ,
देह भान का टूटता दम्भ।
आत्मा – शरीर की पृथक सत्ता का
संज्ञान होता शाश्वत – नश्वरता का।
मन – मस्तिष्क का करता निग्रह,
विकारों का न होता संग्रह।
षड्- इन्द्रियों का जब करता संयम,
वर्चस्व लोभ-मोह का होता कम ।
सहज राजयोग का सरल विधान,
समस्त कष्टों का श्रेष्ठ समाधान ।
अन्तःकरण की शुद्धि होती,
आत्मसाक्षात्कार की अनुभूति होती।
तनाव मुक्त जीवन सम्पूर्ण
शान्तिमय और आनन्द परिपूर्ण ।
भव-बधन का कटता भोग,
आत्मा-परमात्मा का होता संयोग ।
– डॉ० उपासना पाण्डेय