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17 Jan 2022 · 1 min read

ये हाल मेरे दिल का

ये हाल मेरे दिल का दिलदार तक न पहुँचा
ख़त लेके मेरा क़ासिद सरकार तक न पहुँचा

बादे हयात भी मैं इक ऐसा परिन्दा हूँ
‘जो छूटकर क़फ़स से गुलज़ार तक न पहुँचा’

है अपनी मुहब्बत भी इक ऐसा फ़साना जो
मिसरा ही रहा हरदम अशआर तक न पहुँचा

सर काट लिया उसका या अपना कटा डाला
वो हाथ गिरेबाँ से दस्तार तक न पहुँचा

वो जाल साजिशों के बुनता है ‘असीम’ ऐसे
मैं चाहकर भी असली किरदार तक न पहुँचा

– शैलेन्द्र ‘असीम’

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