ये रिमझिम फुहारें…
जब मैंने उनींदी आंखों से
खोले घर के बंद दरवाजे
प्रकृति बरसा रही थी
नेह की अमृत वर्षा
झरोखे से झांक रही थी
बारिश की रिमझिम फुहारें
इस अलसाई सी देह में
स्फूर्ति का हुआ आगमन
तन, मन भी भीगने लगा
बारिश की इन बूंदों में
सच में…! ये बारिश न…
चंचल सी चितचोर है
जो झंकृत कर जाती है
मन के सारे बंद दरवाजे
आंखों में लौटा जाती है
चंचलता और सुहाने सपने
और हम जी लेते हैं
प्यारा सा मासूम बचपन
कुछ पल ही सही….
इस नेह में झर जाती है
मन की चंचल नादानी
और हम खो जाते हैं
अपने बीते बचपन में
सुनो ना…! बरखा रानी
जब भी हम ओढे़ मन पर
परिपक्वता का कठोर आवरण
तुम नेह मधुर बरसा कर
कोमल कर देना मेरा मन
कमला शर्मा