ये बेटियाँ हमारी
“ये बेटियाँ हमारी”
(22 12122 22 12122 बह्र की रचना)
ममता की जो है मूरत, समता की जो है सूरत।
वरदान है धरा पर, ये बेटियाँ हमारी।
मा बाप को रिझाके, ससुराल को सजाये।
दो दो घरों को जोड़े, ये बेटियाँ दुलारी।।
जो त्याग और तप की, प्रतिमूर्ति बन के सोहे।
निस्वार्थ प्रेम रस से, हृदयों को सींच मोहे।
परिवार के, मनों के, रिश्ते बनाये रखने।
वात्सल्य और करुणा, की खोल दे पिटारी।।
ख़ुशियाँ सदा खिलाती, दुख दर्द की दवा बन।
मन को रखे प्रफुल्लित, ठंडक जो दे हवा बन।
घर एकता में बाँधे, रिश्तों के साथ चल कर।
ममतामयी है बेटी, ये छाप है तिहारी।।
साबित किया है तुमने, हर क्षेत्र में तु आगे।
सम्मान हो या साहस, बेटों से दूर भागे।
लेती छलांग नभ से, खंगालती हो सागर।
तुम पर्वतों पे चढ़ती, अब ना रही बिचारी।।
सन्तान के, पिया के, सब कष्ट खुश हो लेती।
कन्धा मिला के चलती, पग पग में साथ देती।
जो एकबार थामा, वो हाथ छोड़ती ना।
तुमको नमन है बेटी, हर घर को तुम निखारी।।