ये नोनी के दाई
ये नोनी के दाई
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का बतावव दुःख संगी
जिन्गी के काहनी।
घातेच सुघ्घर लागय जी गोसईन के जुबानी।।
दिन भर चिल्लावत राहव
ये नोनी के दाई।
लान तो ओ सुजी पानी ल
अउ दे तो दवाई।।
मरीज के ईलाज बर मोर
संगे संग हाथ बटावय।
घर के बुता भारी होवय तो
एको दिन असकटावय।।
एको दिन खिसिया जावय
झल्ला के काहय।
तहूं ह मार डरे बाबु के ददा
सब दुख ल साहय।।
महूं ह दिन भर काहत राहव
ये नोनी के दाई।
जल्दी अकन तै रांध डरबे
भुखा जही भाई।।
अब उही गोठ मन मोला सुरता आथे,।
नोनी के दाई ह , रोज सपना म चिल्लाथे।।
मौलिक रचना
डॉ विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग