“ये दृश्य बदल जाएगा..”
“ये दृश्य बदल जाएगा..”
(मेरी परछाई, हिन्दी काव्य-संग्रह)
आज का विषय,
वीभस्त दृश्य।
मृत आत्मा,
जीवित इंसान।
खामोश चीख,
जलते श्मशान।।
लाचार इंसान,
बेबस इंसान,
असहाय
निर्बल इंसान,
संसाधन के अभाव में
निर्धन इंसान।
जो समय आज है,
जो हालात आज हैं,
भयावह दृश्य,
इतने कभी नही हुए।
हम कुछ भी करने में
असमर्थ हैं।
मूक दर्शक,
निःशब्द!
कहीं कोई छल सा लगता है,
ओझल होता,
फिसलता हाथों से हर पल सा लगता है।
अब तो बस
जैसे तैसे ये वक़्त बीत जाए,
ये साया टल जाए।
सुकून भरा पल आए
और
आकर बस यहीं ठहर जाए।
इतना ही सह सकते हैं,
और सहने की शायद ही हिम्मत बने।
कौन कब कैसे कहाँ
ये सब कब तक हम गिने।
अब तो बस
यही एक ख्वाईश छोटी सी,
दूरियां भुला दें,
फासलों को मिटा दें।
नफरतों का काम नही
भरम का मुखोटा हटा दें।
आपसी सहयोग का
प्रेम का पर्याय बनें।
उदार हृदय बन,
एक दूजे के सहाय बनें।
वक़्त अच्छा या भला
देर सवेर
गुजरना है,
एक दूजे की नजरों में हमें नही गिरना है।
खुद उठना है,
चलना है,
दौड़ लगानी है।
आफत हिम्मत से बड़ी कहाँ
ये ताकत सबको बतानी है।।
मिलकर लड़े तो जंग जीत जाएंगे,
एक सच्चे योद्धा का हम सब धर्म निभाएंगे।
मानवता की मिसाल क्या होती है,
सबक ऐसा दुनिया को देकर जाएंगे।।
फिर-
ये दृश्य भी बदल जाएगा,
जब इंसान इंसान के काम आएगा।
स्वार्थ जब मिट जाएगा,
परहित में हित हमें नजर आएगा।
और-
इंसान सबल बन जाएगा।
नया पथ
नया दौर
नई रीत चलाएगा।
ये दृश्य बदल जाएगा।
ये दृश्य ……………..
©एम०एस०डब्ल्यु० सुनील सैनी “सीना”
जीन्द, हरियाणा, भारत।