ये दुनियाँ हमारी सलामत न होती
गज़ल
काफ़िया- अत
रदीफ़- न होती
122……122……..122……122
ये दुनियाँ हमारी सलामत न होती!
शरीफ़ों मे गर ये शराफ़त न होती!
मगरमच्छ बैठे जो आंखें गड़ाए,
निगल जाते सबको हिफाज़त न होती!
जो देगा वही तो मिलेगा भी यारो,
कि दुनियाँ में उनकी फजीहत न होती!
ये है प्यार कैसा न मिलना मिलाना,
भला था कि ऐसी मुहब्बत न होती!
दवा हो न हो सबको दारू मिलेगी,
कहीं इससे बढ़कर सहुलियत न होती!
ये दुनियाँ के कर्मो का फल है नहीं तो,
कयामत के जैसी मुसीबत न होती!
किया प्यार जिससे रहे उसके प्रेमी,
कोई इससे बढ़कर इबादत न होती!
…. ✍ प्रेमी