ये जो बच्चा है
ये जो तल्लीनता से
आसमान ताकता सा
बच्चा है..
ये गुब्बारे बेच कर..
उड़ा देता है अपने भाव..
टांग देता है सभी को..
नीले बादलों की अरघनी में
वहाॅं नहीं मरते सपने..
ना ही..
विश्वासघात करते हैं अपने!
बंद ऑंखों से..
सबको छूकर..
वो इकट्ठा करता चलता है..
अनुभवों के नये मायने..
चल पड़ता है..
एक नया कल सजाने..
और भरता चलता है..
अपनी ऑंखों में..
उज्जवल भविष्य के..
अकल्पनीय खजाने!
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ