ये जल जमीं हवा गगन सँवारता वो कौन है।
गजल
1212……1212……1212…..1212
ये जल जमीं हवा गगन सँवारता वो कौन है।
विराजमान हर जगह न दीखता वो कौन है।
तमाम योगी भोगी सब जुटे ये राज जानने,
बता न पाये आज भी जो पूछता वो कौन है।
है देश में विकास तो गरीब है गरीब क्यों,
ये झूठ मूठ पुल हवा में बांधता वो कौन है।
जो घट रहा है आस पास है तुम्हें खबर कहाँ,
तुम्हारे घर के सामने जो मर गया वो कौन है।
ये प्यार भी अजीब है पता नहीं चला मुझे,
हमारे दिल में चुपके से उतर गया वो कौन है।
ये पेंड़ पौधे जीव जंतु आग पानी औ’र हवा,
बनाता पहले फिर उसे बिगड़ता वो कौन है।
जो प्रेम का प्रतीक है जो शक्ति का स्वरूप है,
हरेक दिल में प्रेमी बन जो रम रहा वो कौन है।
……✍️ प्रेमी