ये खामोशियाँ मुझको भाने लगीं हैं।
ये खामोशियाँ मुझको भाने लगीं हैं,
मन के शोर से दूर ले जाने लगीं हैं।
कश्तियाँ बवंडरों को भटकाने लगीं हैं,
लहरों की सादगी से रिश्ता निभाने लगीं हैं।
ये उड़ाने इस पंछी को सताने लगीं हैं,
बिछड़े घोंसलें की यादें अब आने लगीं हैं।
अँधेरी रातें सिरहाने बैठ थपथपाने लगीं हैं,
रौशनी सूरज की यूँ सासें जलाने लगीं हैं।
हवाएं पहाड़ों पर रुक कर सुस्ताने लगीं हैं,
अपने सफर से अब वो कतराने लगीं हैं।
कहानियां किरदारों को छोड़कर जाने लगीं हैं,
मध्यांतर को हीं अंत बताने लगीं हैं।
सुलझी पहेलियाँ खुद को उलझाने लगीं हैं,
जवाबों में हीं सवाल छुपाने लगीं हैं।
नजरें नजारों से खुद को बचाने लगीं हैं,
बंद कमरों में सुकून पाने लगीं हैं।
अक्श आईनों में धुंधलाने लगीं हैं,
बारातें यादों की पलकों पर सजाने लगीं हैं।
हिम्मत मंदिरों की चौखट पर टूट जाने लगीं हैं,
आस्था फूलों की तरह कुम्हलाने लगीं हैं।
ये मोड़ जीवन के मुझको डराने लगीं हैं,
इन क़दमों से मंजिलों को चुराने लगीं हैं।