ये कैसी चली हवा है
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वहम था जिसे बस यही वो खुदा है।वही आज तूफां में औंधा पड़ा है।।
सने हाथ उसके पिता के लहू से।
खुदा जाने कैसी चली ये हवा है।
सवेरे सवेरे जो निकलें वो घर से।
तभी दिन हमारा शुरू ये हुआ है
मिली जब नजर उस क़ातिल सनम से।
इरादा ये मरने का हमने किया है
जो खामोश नजरों से दामन ये थामा।
तो अपने पे ही हो रहा अब गुमां है।
आरती लोहनी