ये आँधियाँ हालातों की, क्या इस बार जीत पायेगी ।
ये आँधियाँ हालातों की, क्या इस बार जीत पायेगी,
खुशियों के जो चुराए लम्हें, उन्हें छीन ले जायेगी।
लहरों पर चलती ख़्वाहिशें, साहिलों से मिल पायेगी,
या गहराईयां समंदर की, इन्हें खुद में हीं समायेगी।
शामों के अंधेरों को, क्या सुबह की किरणें बुलायेगी,
या ओस की बूंदों को, ये घनी धुंध हीं सुखायेगी।
फूलों की ख़ुश्बू कभी, इस बाग़ को महकाएगी,
या पतझड़ में गिरे पत्ते हीं, इसके ग़लीचे सजायेगी।
खुले जख़्मों की क़िस्मत, कभी मरहम से टकरायेगी,
या भरने की चाहतें, घावों को और भी गहराएगी।
चौखट पर खड़े सपनों को, क्या ये आँखें अपनायेंगी,
या एक नींद की झलक को, ये रातें भी तरसाएगी।
जिंदगी शोर में गुम, ख़ामोश ईमारत बन रह जायेगी,
या खामोशी में छिपी गूँज, किसी ज़हन को जगायेगी।
ये टूटती उम्मीदें, साँसों को स्तब्ध कराएगी,
या शक्ति आस्था की, उस पाषाण को पिघलायेगी।
सवालों की बारिशें, इस धरती को कबतक भींगायेंगी,
कभी तो जवाबों की तलाश, मुझे मुझसे मिलायेगी।