यूक्रेन हुआ बेज़ार है
यूक्रेन हुआ बेज़ार है
कैसी ये युद्ध की मार है
अपने हो गए पराये
इंसानियत लाचार है
बच्चों की चीख गूंजती
मानवता शर्म छोड़ती
तन टुकड़ों में बंट रहे
ये धरा भी चीखती
कैसी ये अहं की लड़ाई है
जनता की जान पर बन आई है
अनाथ होता बचपन
प्रेयसी का संग भी छूटता
कोई अपने भाई को खोता
कोई अपने पिता को रोता
मानवता हुई शर्मशार है
इंसानियत पर वार है
कि ये मरा , कि वो मरा
कि बम यहाँ गिरा , कि वहां गिरा
चीथड़े बदन के , हवा में तैरते
कोई यहाँ गिरा, कोई वहां गिरा
नवजातों की मुस्कान खो गयी
माँ आंसुओं में नहा गयी
कि मैं रोऊँ , कि वो रोये
हर शख्स बेज़ार हो रहा
कोई तो मानवता के बीज रोपो
हो सके तो कोई , इस अनर्थ को रोको
आज उक्रेन त्रस्त हो रहा
कल और किसी की बारी
कैसी ये अहं की बीमारी
पड़ रही मानवता पर भारी
कोई तो चीख – चीत्कार रोको
कोई तो इंसानियत के दुश्मनों को रोको
यूक्रेन हुआ बेज़ार है
कैसी ये युद्ध की मार है
अपने हो गए पराये
इंसानियत लाचार है |