” यूँ तो बस एक डोर है राखी “
यूँ तो बस एक डोर है राखी
धागे के दो छोर है राखी
कोई मोती से सजी हुई
कोई रेशम से बुनी हुई
कोई शंख पुष्प चन्दन चाँदी
कोई तितली मोर पंख इत्यादि
दिल का दिल से जोड़ है राखी
यूँ तो बस एक डोर है राखी…
प्रेम हर्ष उल्लास समर्पण
सभ्य समाज का है एक दर्पण
क्यों दुराचार सर उठा रहा
रिश्तों का मतलब मिटा रहा
मन को रही झकझोर है राखी
यूँ तो बस एक डोर है राखी…
भाई बहन के प्रेम का द्योतक
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण तक
सर्वधर्म सम्भाव सिखाती
सामाजिक दंश मिटाती
उम्मीदों की भोर है राखी
यूँ तो बस एक डोर है राखी…
देश प्रेम का चोला ओढ़े
वीरों ने रण में प्राण भी छोड़े
क्या बैसाखी ईद दिवाली
किसान देश की है खुशहाली
एक विचार चहुँ ओर है राखी
यूँ तो बस एक डोर है राखी…
एक सूत्र में बँध जायें हम सब
विश्व प्रबुद्ध कर जायें हम सब
विविधता के रंगों की माला
माँ भारती का स्वरुप निराला
शक्ति का गठजोड़ है राखी
यूँ तो बस एक डोर है राखी…
-विवेक जोशी “जोश”