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11 Jun 2023 · 1 min read

युद्ध

युद्ध

सदियों से लड़े जा रहे युद्ध

जानते हैं सब

युद्ध केवल विनाश

विकास का, मानवता का।

कैसी है फ़ितरत

नहीं रुकते युद्ध

पहले से और अधिक होते जाते‌

भयानक और विभत्स।

नहीं काम आती मानवीय मनीषा

न कला और‌ साहित्य का सत्संग

न धर्म न अध्यात्म का फलागम

शांति के प्रयास हो रहे‌ विफल

केवल फहराता है पाश्विकता का परचम,

घूम‌ रहे अंग्निकांड छतों और‌ चौबारों पर

अस्पतालों और पूजाघरों के गलियारों में

धराशयी आवासीय अट्टालिकाएं,

बिखरे भग्नावशेष

मानवीय सभ्यताओं के

छलनी हुआ अंग-अंग

खेत और खलिहानों का

छाया के कवच,बाग और बगानों का

लापता हैं पता

छोटी बड़ी संतानों का

जहां तक नज़र जाये

दिखते हैं जले मलबे के ढेर

बिखरे हैं जगह जगह गलते सड़ते मानव शव

गौरिया, तोते मैना के

गौशालाएं भी अटी पड़ी

दुर्गंधाते पिंजर‌ पशुओं के

जिंदा हो गये‌ शमशानों में

बुरी तरह आहत हैं भावनाएं और आस्थाएं

शर्मसार मानवता

खिलखिला रहे दानव

पी रहे भर भर प्याले

सांसों और लहू के

भोले भाले बचपन के

लहूलुहान हो रही ममता

नहीं पसीजता किसी का भी कलेजा

नहीं ‌रहा किसी में भी दम ख़म

सक्रिय हैं तथाकथित कर्णधार

हथियारों के व्यापार में

अपने अपने मुनाफे के संसार में

तुले हैं हथियार व्यापारी

उजाड़ कर रहेंगे

यह शस्यश्यामला वसुन्धरा

वाष्प बन उड़ जायेगी

ब्रह्माण्ड से धरा।

Language: Hindi
178 Views
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