मृत्यु संबंध की
डॉ अरुण कुमार शास्त्री एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
🌹🌹 संबंध 🌹🌹
कमजोर पड़ रही अब
रिश्तों की डोर बा ।
हाँथ से फिसल रहे
सगरे स्नेहिल संबंध बा ।
बात – बात पर खिन्नता,
क्रोध अनाचार बा ।
कमजोर पड़ रही अब
रिश्तों की डोर बा ।
बाप , माँ , बहन , भईया
दीखन को परिवार बा ।
अपने -अपने कमरा मा ,
अपना – अपना मोबाईल बा ।
डिनर के बखत औपचारिकता
का व्यवहार बा ।
बाद उसके फेस बुक , सगरी रैना ,
इंस्टा , व्हाट्स अप्प के मित्र बेशुमार बा ।
मेसेन्जर पर चएटिन्ग
देखो रात दिन हो रही ।
झूटे बर्तन भरे सिंक में ,
माँ अकेली धो रही ।
सुप्रभात गुड मॉर्निंग मित्रों से सतत
अखंड ऑनलाइन आचार बा
दादी नानी दादा नाना
माई बाप तो एक दम बेकार बा ।
अईसन पारिवारिक संबंध
की मृत्यु प्रतिदिन हो रही ।
आपसी रिश्तों की प्रगाढ़ता
निस दिन क्षीण हो रही ।
कमजोर पड़ रही अब
रिश्तों की डोर बा ।
हाँथ से फिसल रहे
सगरे स्नेहिल संबंध बा ।