युगों की नींद से झकझोर कर जगा दो मुझको
युगों की नींद से झकझोर कर जगा दो मुझको
सो रही अन्तरात्मा की आवाज जगा दो मुझको
बिखर न जाएँ जिन्दगी में ख़ुशी के पल
आशा की नई किरणों से सजा दो मुझको
आंसुओं भरी रातों में , बिखरें न जिन्दगी के हंसी पल
एक मुटठी चांदनी हो , मेरी जिन्दगी का सबब
न जाने अश्क से आँखों में क्यों हैं आये हुए
इन आंसुओं के समंदर से बाहर निकाल लो मुझको
मेरे सपनों की शाम , न हो जाए कहीं
हो सके तो प्यार की सरिता में बहा दो मुझको
तिनके – तिनके से सजाया है आशियाना मैंने
हो सके तो इस आशियाने में सजा दो मुझको
एक ख़त लिखा था मैंने तुझको ए मेरे सनम
कुछ फूल इन खतों के जवाब में भेज दो मुझको
आकाश से भी ऊँची थी मेरे सपनों की उड़ान
दुआ करो सपनों को मेरे , और आसमान नसीब हो मुझको
युगों की नींद से झकझोर कर जगा दो मुझको
सो रही अन्तरात्मा की आवाज़ जगा दो मुझको
अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”