बाँकी अछि हमर दूधक कर्ज / मातृभाषा दिवश पर हमर एक गाेट कविता
Binit Thakur (विनीत ठाकुर)
स्वर्ग से सुंदर मेरा भारत
*छोटी होती अक्ल है, मोटी भैंस अपार * *(कुंडलिया)*
तू तो सब समझता है ऐ मेरे मौला
What consumes your mind controls your life
गमों की चादर ओढ़ कर सो रहे थे तन्हां
"बेरंग शाम का नया सपना" (A New Dream on a Colorless Evening)
चवपैया छंद , 30 मात्रा (मापनी मुक्त मात्रिक )
1-कैसे विष मज़हब का फैला, मानवता का ह्रास हुआ
सदा दूर रहो गम की परछाइयों से,
तुम जो कहते हो प्यार लिखूं मैं,
हरा न पाये दौड़कर,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
इस दुनिया की सारी चीज भौतिक जीवन में केवल रुपए से जुड़ी ( कन
लाल रंग मेरे खून का,तेरे वंश में बहता है
वक्त क्या बिगड़ा तो लोग बुराई में जा लगे।