यादों में कहीं
यादों में कहीं, गुम तुम्हरा तस्वीर है
यादों में कहीं, गुम हमारा तकदीर है
यादों में कहीं, गुम वो ऐतबार है
यादों में कहीं, गुम, तेरे दिल का मुझसे सजा दरबार है ।।
यादों में कहीं, इश्क़ बैठा रो रहा
यादों में कहीं, फिर मैं तेरा हो रहा
यादों में कहीं, खलिश रूह पिरो रहा
यादों में कहीं, मैं बेवक्त तुझमें खो रहा ।।
यादों में कहीं, कल्ब ये आघात है
यादों में कहीं, तेरे जूठे मयस्सर का साथ है
यादों में कहीं, तेरे कंगन की खनक सिर्फ मेरी है
यादों में कहीं, मेरे साथ की परछाई सिर्फ तेरी है ।।
यादों में कहीं, वो साथ गुजरे पल हैं
यादों में कहीं, वो धुंधले बीते कल हैं
यादों में कहीं, साथ भींगे बारिश में लब तुझसे सटा है
यादों में कहीं, तेरे जुल्फ़ों से झटके बूंदों की बनी सतरंगी घटा है ।।
यादों में कहीं, मुझे तेरा होने का तकब्बुर है
यादों में कहीं, वो दर्द सेहने का चढ़ा सुर है
यादों में कहीं, वो रातों की शैतानी मद्धम पवन है
यादों में कहीं, चांद पर पसरता वो अब्र का कफ़न है ।।
यादों में कहीं, दोस्तों के संग तेरे नाम की महफ़िल है
यादों में कहीं, तेरे इश्क़ के दरिया की साहिल है
यादों में कहीं, बस तलब तेरे नाम की है
यादों में कहीं, तेरे बाहों में बीते लम्हें शाम की है ।।
– निखिल मिश्रा