“यादों के अवशेष”
“यादों के अवशेष”
उस विशाल वृक्ष के नीचे
न जाने कितने प्रेम परवान चढ़े
कितने किस्से कहे गए,
उसकी छाँव तले अवस्थित
तालाब के निर्मल जल में
न जाने कितने कंकड़ फेंके गए।
वक्त के साथ अजीब हो गया है
अब वहाँ का परिवेश,
अगर कुछ बच गया है तो
सिर्फ यादों के अवशेष।