यादों की गली
यादों की गली
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यादों की गली
में जरा देखना
झांक के
मिलेंगे तुम्हें
कुछ दिन उजले
कुछ दिन धुँधले
कुछ अमावस
की स्याह काली रातें
कुछ पूर्णिमा की
चमकती चांदनी रातें
गलियां जो
चहकती थी दिन भर
महकती थी दिन भर
अब सारी वीरान मिलेंगी
सुनसान मिलेंगी
बंद मिलेंगे
सब दरवाज़े
अलबत्ता
एकाध झरोखे
खुले मिलेंगें
आंसुओं में बह गये
कहकहे हमारे
जाने किस दिन बात करेंगे
नदिया सूखी
कूएं सूखे
पानी दस दस
कोस मिलेंगे
विकास की आंधी
ऐसी छाई
हम भी धूल से
अटे मिलेंगें
यादों की गली
से लौट के आओ
वो उजले दिन
फिर न मिलेंगे।
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राजेश’ललित’