यादों का झरोखा
इक बार चलो फिर लौट चलें
यादों के उस वातायन में
जहां साथ बिताए अनगिन पल
दस्तक देते मन आंगन में
कुछ बातें कर्मठ जीवन की
कुछ उलझी सुलझी गिरहों की
कुछ जिद ख्वाबों को जीने की
एक नई लीक पर चलने की,
बहनें जब विदा हुईं घर से
सूना था आंगन इस घर का
एक नई भोर की आभा से
आगाज़ हुआ था खुशियों का
भैया के दामन से बंधकर जब
उतरी थी नीरा भाभी की डोली
छलकी थी गागर खुशियों की
महकी थी जीवन की डाली
माना परिवर्तन नियम अटल
और मिलन-विरह दो पाखी हैं
पर सत्य यही जीवन पथ का
सब आते जाते राही हैं,
आशीष सदा रखना हम पर
इतने के हम अभिलाषी हैं।