यादों का जंगल
यादों का इक जंगल है
जिसमें मैं अक्सर राह
भूल जाता हूँ
जिसमे ऊँचे ऊँचे कुछ
रिश्तों के वृक्ष हैं
जो दूर दूर तक फैले हैं
कुछ सादगी को समेटे आसमां
को छूते चुपचाप खड़े हैं
कुछ छल कपट की लताओं
में उलझे कोई षडयंत्र
रच रहे हैं
वो वृक्ष अक्सर बौने रह जाते हैं
कुछ जंगल की आग में तबाह
अधजले से खड़े हैं
कुछ अंतिम साँसें लेते जर्जर
जीर्ण शीर्ण खड़े हैं
कुछ नन्हे-नन्हे नव अंकुरण
जीवन का सपना लिए
आँख खोल रहे हैं
कुछ छोटी छोटी बातें
जंगली घास की तरह फैली हैं
कुछ मीठी यादें पछियों के
कलरव की मानिंद
जंगल का मौन भंग करती हैं
कुछ सुखद लम्हे
ख़ुशबू के गुंचों की मानिंद
वृक्षों पर लटके हैं
यादों का इक जंगल है
जिसमें मैं अक्सर
राह भूल जाता हूँ….
©️कंचन”अद्वैता”