‘ यादें और बारिश ‘
बचपन की बरसात मजेदार होती थी
सर से लेकर पैरों तक सराबोर होती थी ,
धीरे – धीरे हम बड़े होने लगे
बरसात में थोड़े – थोड़े गीले होने लगे ,
वयस्क होने पर इसका आनंद कभी कभार लेते
पढ़ने की चिंता में प्यारी बरसात को नकार देते ,
बरसात तब भी होती जब ऑफिस जान लगे
ऑफिस की खिड़की से उसको ताकने लगे ,
जब एक से दो हुये बरसात नजर आने लगी
जिसको भूल बैठे थे अब ज़हन में छाने लगी ,
जिम्मेदारियों के साथ बरसात पुरानी हो गई
हम कभी भीगते थे ये बीती कहानी बन गई ,
अब दवाईयाँ लेने भी छतरी साथ ले जाते हैं
बेवक्त बरसात ना हो जाये ये सोच घबड़ाते हैं ,
जीवन के इस पड़ाव पर दोनों साथ बैठते हैं
बरसात को इन आँखों की प्याली से पीते हैं ,
सुख तो बरसात का बस बचपन में आता था
भीगते हम थे गुस्से में बुखार माँ को आता था ।
स्वरचित , मौलिक एवं अप्रसारित
( ममता सिंह देवा , 28/05/2021 )