यादें
तेरे आँचल का परिमल आता,
अब नींद नहीं मैं ले पाता।
कुछ याद तेरे संग पल बीता
कुछ चाहत को रख अब जीता।
पर बदन हुआ अब गम का घर
और जीने से लगता है डर।
जब बात कोई तेरी बतलाता,
आंखों मे सावन छा जाता।
तेरे आँचल———
अब नींद—–
तूं मेरी थी मैं तेरा था
अब फिर क्यूँ तू बेगानी
जिसका चेहरा हंसता दिखता
उसकी आंखों मे पानी है।
आंखों मे पावस का मौसम,
और काम मेरा अविराम रहा।
समझ नहीं आता चाहत का ये कैसा अंजाम रहा।
खुली आंख मे भी जब हम को स्वप्न तेरा है दिख जाता।
तेरे आँचल—–
अब नींद—–
जीवन है कांटो का जंगल,
मेरे दिल मे है कुछ बीता कल।
सब कुछ तो हम को याद नहीं
पर तेरी गोदी का कल।
मैं उस पल मे जब खो जाता
तो दुनिया कहती है पागल।
तेरी यादों से न जाना पागल कहलाने के भय से,
सच मे तूं मेरी कैदी है मैं रख्खा दिल देवालय में।
दिल देवालय में जब जाता।
तेरे आँचल—- अब नींद—–
कवि ओम सिंह फैजाबादी +917777921339