“यह भी गुजर जाएगा”
वह चक्रवर्ती सम्राट था। न्याय, प्रशासन और सैन्य शक्ति के सर्वोच्च अधिकारी। वे उच्च कोटि के विचारक और वास्तुविद भी थे। वे एक भव्य महल निर्मित करवा रहे थे।
उनका विचार था कि उस महल के मुख्य द्वार पर कुछ ऐसे शब्द लिखे जाएँ जो दुःख और सुख दोनों की दशा में समान रूप से प्रेरणा दें, ताकि उनके इन कार्यों के कारण सारा संसार उन्हें सदा याद रखे। ऐसे सुन्दर वाक्य से राज्य भर से प्रविष्टियाँ आमंत्रित की गईं।
प्राप्त प्रविष्टियों को देखते समय एक पर सम्राट की नजर जा टिकी। उसमें लिखा था- “यह भी गुजर जाएगा।” राजा द्वारा इस प्रेरक वाक्य को उस भव्य महल के मुख्य द्वार पर लगाने के आदेश दिए गए।
यह सत्य है कि दुनिया में कुछ भी स्थाई नहीं। न सुख, न दुःख। इस शब्द को पढ़ने से दुःखी व्यक्ति के हृदय में आशा की किरणें प्रस्फुटित होती और सुखी व्यक्ति के मन में वक्त की क्षण-भंगुरता याद हो आती, जिससे कि वे अच्छे कर्म की ओर प्रवृत्त हो जाते थे।
मेरी प्रकाशित लघुकथा संग्रह : ‘मन की आँखें’ (दलहा, भाग-1) से,,,
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
हरफनमौला साहित्य लेखक।