यह चाय नहीं है सिर्फ़, यह चाह भी है…
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
सुबह-सुबह वह मुझे
नींद से उठाएगी
चाय का कप मेरे
हाथों को थमाएगी
चाय सहित थाम लूँगा
हाथ उसका, वह कहेगी
यह क्या कर रहे हो
बोल पड़ूँगा
अपने प्रेम को
स्पर्श कर रहा हूँ
तुममें खुद को जीने की
कोशिश कर रहा हूँ,
तुम्हारी तो शुरू हो गई
सुबह-शाम तक की, भागादौड़ी
मेरे अलावा तो तुम्हें
रखना है बहुतेरों का ख़्याल,
छू लूंगा, तुझे तो
दूर होकर भी रहूँगा पास
जाते वक्त तुमको
आलिंगन कर जाना
दिन भर देता है सुखद एहसास,
यह चाय नहीं है सिर्फ़
यह चाह है, प्यार का
भावनाओं के अनगिनत एहसास का,
सुबह की प्याली, ऐसे ही थामने दो
मुझे अपने मुहब्बत का पैमाना
हर रोज़ नापने दो…