यह कौन सा विधान हैं?
सुन रही वसुंधरा सुन रहा है गगन
सुमधुर गीत आज गुनगुना रही पवन।
प्रभात सूर्य तेज लिए पूर्व मुस्कुरा रहा
लाल ताम्र रंग की रश्मियाँ लुटा रहा।
कली-कली खिल उठी फुल महकने लगे
ये किस अदृश्य शक्ति का ऐसा विधान है।
कौन सा विधान है ये कौन सा विधान।
धरती अंबर का जैसे हो रहा है मिलन
वधु बनी वसुंधरा वर बना हे गगन।
रंग बिरंगी लता वधू श्रृंगार कर रही
पुष्प मोती जड़े कण्ठ हार बन रही।
भ्रमर गुनगुना रहे कोयल गीत गा रही
राग रागिनी लिए नित बहार जा रही।
मयूर नृत्य कर रहा है पंख फैलाए आज।
ये किस अदृश्य शक्ति का ऐसा विधान है
कौन सा विधान है ये कौन सा विधान है।
पर्वत की ऊँची चोंटियाँ हिमाच्छादित हुए
नील गगन को निज मस्तक धारण किए।
तटनी प्रवाह हो रहा है टेढ़ी-मेढ़ी राह पर
दूर स्वर्ण सर्प मानो रेंग रहा धराह पर।
उछल उछल के जलतरंग सागर तट आ रही
बार-बार आ रही चट्टान से टकरा रही।
दूर क्षितिज पर रवि डुबकी लगाये साँझ।
ये किस अदृश्य शक्ति का ऐसा विधान है
कौन सा विधान है ये कौन सा विधान है।
निशा प्रहर चंद्रमा रजत प्रभा बिखेर रहा
बादलों के मध्य में धीमे-धीमे चल रहा।
तारे टिमटिमा रहे श्वेत मोती समान
प्रकृति का यह विचित्र खेल है महान।
जुगनू चमचमा रहे हैं हरा प्रकाश भर।
ये किस अदृश्य शक्ति का ऐसा विधान है
कौन सा विधान है ये कौन सा विधान है।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’
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