यह कैसी आस्था ,यह कैसी भक्ति ?
यह कैसी आस्था ,यह कैसी भक्ति ?,
नहीं दिखती थोड़ी सी भी आसक्ति ।
आडंबर है मात्र ,ना कहो इसे प्यार ,
क्या इसी के लिए करते वर्ष भर इंतजार।
घर पर लाते हैं पहले बड़े मनोयोग से ,
आते हैं प्रभु ,अतिथि बनकर संयोग से,
तरह तरह के व्यंजन और मिष्ठान बनते हैं,
जिसका बड़े प्रेम से उन्हें भोग लगाते हैं।
भक्ति पूर्ण और प्रसन्नता पूर्ण वातावरण ,
होता है तब बड़ा उमंग भरा वातावरण ।
उन दिनों खुद को बड़ा भक्त दर्शाते हैं ,
लोग खुद को भाग्यशाली प्रतीत करवाते हैं।
मगर फिर क्या होता है आगे भी सुन लो ,
चार दिन के शौक की परिणीति देख लो ,
प्यारे बप्पा के विदा की जब घड़ी आई ,
आंसुओं के संग सारी भावनाएं घुल गई ।
घर से विदा होकर वाहन पर सवार हुए ,
और फिर किसी कुंए ,नहर ,नदी या सागर!
विसर्जित हुए भगवान गजानन नट नागर।
विसर्जित कर दिया फिर ली ना कोई सुध ,
अंग भंग होकर भगवान पड़े हैं बेसुध ।
क्या सोचते होंगे बेचारे! कैसा यह मानव है!
मानव कैसा यह तो आज का क्रूर दानव है।
कितना स्वार्थी ,अवसरवादी,अहंकारी ,दुष्ट,
क्या हो ! यदि मैं हो जायूं इनसे रूष्ट।
मगर क्या करें अपनी दयालुता के कारण ,
नहीं देना चाहते कोई कठोर दण्ड अकारण
देना चाहते हैं अवसर मानव को सुधरने का
मगर ऐसा कृत्य देखकर दुख तो होता है उनको दारुण ।
देखकर वैसे ही पृथ्वी की दारुण दशा ,
अबला नारी ,मासूमों और वंचितों की दशा
मानव रूपी दानव की पतन की सीमा जांचते होंगे ।
आशा करते हैं हम ! वो प्रलय लाने को ,
कोई अच्छा सुअवसर देख ही रहे होंगे ।
किसी और का तो पता नहीं ,मगर सत्य है ,
हम भी प्रतीक्षारत हैं उनके आगमन को ,
कोई न कोई अवतार लेंगे अवश्य ,परम सत्य है ।
आयेंगे वो वसुंधरा के कष्ट मिटाने को ।