यह कैसा है धर्म युद्ध है केशव
यह कैसा धर्म युद्ध है केशव अपनों का सॅ॑हार हुआ
अपनों के हथियार चले अपनों पर अत्याचार हुआ-ये
पूत पिता पितामह खोए खोया सब रिश्ते नातों को
भाई बंधु और शौहर खोए खोया सब जज्बातों को
धोखे छल कपट का इसमें यह कैसा व्यवहार हुआ-ये
जिधर देखिए लाश पड़ी है देखो यह चित्कार सुनो
जीत की जय जयकार नहीं है हो रही हाहाकार सुनो
योद्धाओं को दुर्योधन ले गया सूना है दरबार हुआ–ये
पांडव जेष्ठ कर्ण को खोया अभिमन्यु से लाल गए
पितामह सी दीवार ढ़ह गई गुरु द्रोण सी ढाल गए
घर-घर से मरे रण बांकुरे निर्दोषों पर प्रहार हुआ–ये
नहीं चाहिए केशव ऐसा रक्त रंजित यह ताज सुनो
जी करता मैं भी मर जाता आती मुझको लाज सुनो
टूट गया हूॅ॑ बिखर गया हूॅ॑ तन मन से लाचार हुआ–ये
कैसे चलूॅ॑ महलों में केशव भरा हूॅ॑ आत्मग्लानि से
कैसे पहनूं ताज कहो ये मिला अपनों की हानि से
‘V9द’ कहे मैं जीत के हारा मन मेरा बेज़ार हुआ–ये