“यह कैसा दौर”
“यह कैसा दौर?”
भूखे को अब न भोजन देते
न प्यासे को पानी,
रुग्ण होती जा रही मानवता
कोरे बँट रहे ज्ञान।
भूख से नन्ही जान तरसती
बुतखानों की सीढ़ी पे,
लाखों-करोड़ों का जबकि
कर देते हैं दान।
“यह कैसा दौर?”
भूखे को अब न भोजन देते
न प्यासे को पानी,
रुग्ण होती जा रही मानवता
कोरे बँट रहे ज्ञान।
भूख से नन्ही जान तरसती
बुतखानों की सीढ़ी पे,
लाखों-करोड़ों का जबकि
कर देते हैं दान।