* यही है क्या तुम्हारा समाज *
जिसे तुम कहते हो समाज
पर वो नहीं है सम आज
दीवारें खींच दी है जिसने
आज इंसां -इंसां के बीच
पहना दिया लोह आवरण
जात- पांत के बंधन को
जिसे तुम कहते हो समाज
पर वो नहीं है सम आज
इंसान इंसानियत भूलकर
सूदखोर बन जाता हैं
सौ रूपये पर दस परसेंट
कमीशन वह खाता है
हकलाता है गरीब बेचारा
जरूरत पर उसके आगे
सौ रुपए पर दस परसेंट
देने को हो जाता है तैयार
बिक जाता है वह
इस सूद की राशि में
देखो यह कैसा है समाज
जिसमे लूट जाता है गरीब
नीच कुल का होता है जो
नीच बना दिया जाता है कैसे
होती है उनमें भी अहर्ताऐं पर
उन्हें दबा दिया जाता है कैसे
यही है क्या तुम्हारा समाज ?
जिसे तुम कहते हो समाज
पर वो नहीं है सम आज ।।
?मधुप बैरागी