यही तो जीवन है
जगती के कटु यथार्थ को जीते हुए
दुख की दास्तान दबाकर
हर हाल में उमंगित रहे
तो जीवन है
असमय मृत्यु के अचानक आगमन पर
हृदय विदारक चित्कारों में
शव के साथ अविचलित रहे
तो जीवन है
संकटों के सावन में
पीड़ितों के दामन में
धीरज का धमाल रहे
तो जीवन है
स्वयं को ईश्वर के नाटक का
एक पात्र मान कर
अभिनय का अनुमान करें
तो जीवन है
समय के कालचक्र में
जीवन की हर घटना को
सहज स्वीकार करें
तो जीवन है
रचनाकार ओमप्रकाश मीना