यमुना तीर
गुमसुम होकर राधिका ,बैठी यमुना तीर
नही कृष्ण आये अभी ,कौन बधाये धीर
कृष्णा पुकारे राधिका ,बनकर के गोपाल
तांक रही है शून्य में ,नयनों में भर नीर
ज्यो नजरें नीची हुई ,देखा अद्भुत दृश्य
निज परछाई खो गई,कृष्ण दिखे है क्षीर
देख कृष्ण की साँवली ,सूरत हुई बिभोर
सुधबुध के संग राधिका ,खो बैठी उर धीर
जो कल मेरा घनश्याम था आज द्वारिकाधीश
याद में उसके बड़ रही है उर की बस पीर
कैसे समझाऊँ तुम्हे बड़ी जटिल है बात
कृष्ण है कोमल कुमुद से ,पर सुधि है शमशीर
राधा मीरा रुक्मिणी हो बैठी घनश्याम
इसी बात को कह गये सूरदास और मीर
Rishabh Tomar
ऋषभ तोमर