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19 May 2024 · 1 min read

यथार्थ

मां का प्रेम और त्याग था
जिसने धरा पर तुझे लाया था
पिता की उंगली पड़कर तूने
एक एक कदम बढ़ाया था
एक एक पल बढ़ता देख
जो खुशी उन्हें मिलती थी
क्या उस खुशी का अंदाजा
तूने कभी लगाया था
कह देना बहुत आसान होता है कि
आपने क्या किया हमारे लिए
वह तो फर्ज था आपका
जो भी किया आपने हमारे लिए
एहसास भावनाओं का
उस वक्त कहां हो पाता है
उनके अंतर्मन की व्यथा को
भला मन कहां समझ पाता है
धीरे-धीरे बड़े होकर जब
हम स्वयं उस दौर से गुजरते हैं
संसार की दुनियादारी और
अपने कर्तव्यों को समझते हैं
तब जाकर एहसास होता है
उन्होंने क्या क्या किया था हमारे लिए
कर्तव्यों की आड़ में अपनी
इच्छाएं तक होम की हमारे लिए
इस वसुधा पर अहमियत उनकी
भगवान से कमतर नहीं
मेरे लिए तो दोनों सिर्फ और सिर्फ
भगवान हैं कुछ और नही

इंजी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश

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