यथार्थ
मां का प्रेम और त्याग था
जिसने धरा पर तुझे लाया था
पिता की उंगली पड़कर तूने
एक एक कदम बढ़ाया था
एक एक पल बढ़ता देख
जो खुशी उन्हें मिलती थी
क्या उस खुशी का अंदाजा
तूने कभी लगाया था
कह देना बहुत आसान होता है कि
आपने क्या किया हमारे लिए
वह तो फर्ज था आपका
जो भी किया आपने हमारे लिए
एहसास भावनाओं का
उस वक्त कहां हो पाता है
उनके अंतर्मन की व्यथा को
भला मन कहां समझ पाता है
धीरे-धीरे बड़े होकर जब
हम स्वयं उस दौर से गुजरते हैं
संसार की दुनियादारी और
अपने कर्तव्यों को समझते हैं
तब जाकर एहसास होता है
उन्होंने क्या क्या किया था हमारे लिए
कर्तव्यों की आड़ में अपनी
इच्छाएं तक होम की हमारे लिए
इस वसुधा पर अहमियत उनकी
भगवान से कमतर नहीं
मेरे लिए तो दोनों सिर्फ और सिर्फ
भगवान हैं कुछ और नही
इंजी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश